तुम तीन अलग अलग अगरबत्ती लो और तीन कोनो में लगा दो, किसी कमरे में |
कमरे की हवा तो तीनो को ले के चलती है | तुम एक कोने में जाओ तुमको गुलाब
की खुशबू आयेगी, दुसरे मैं जाओ मोगरा महकेगा और फिर तीसरे कोने में जाओ तो चमेली | अगर हवा ही नहीं तो खुशबू कैसी, बिलकुल वैसे ही अगर हवा रुपी ईश्वर नहीं तो अगरबत्ती रुपी संप्रदाय किस काम के, ईश्वर एक ही है जैसे हवा एक ही है, खुशबू अनेक |
फिर भी पैगम्बरों और फकीरों के अनुभव और आनंद सुगंध के अनुसार प्रथक हो सकते है लेकिन हम ये कैसे कह सकते है की मेरा अनुभव सुगंध है और आपका दुर्गन्ध क्योकि सुगंध हो या दुर्गन्ध दोनों का अस्तित्व तो हवा ही है |
हवा को बाटने का सामर्थ कही नहीं, निर्वात का अस्तित्व भी हवा का न होना ही है|
कमरे की हवा तो तीनो को ले के चलती है | तुम एक कोने में जाओ तुमको गुलाब
की खुशबू आयेगी, दुसरे मैं जाओ मोगरा महकेगा और फिर तीसरे कोने में जाओ तो चमेली | अगर हवा ही नहीं तो खुशबू कैसी, बिलकुल वैसे ही अगर हवा रुपी ईश्वर नहीं तो अगरबत्ती रुपी संप्रदाय किस काम के, ईश्वर एक ही है जैसे हवा एक ही है, खुशबू अनेक |
फिर भी पैगम्बरों और फकीरों के अनुभव और आनंद सुगंध के अनुसार प्रथक हो सकते है लेकिन हम ये कैसे कह सकते है की मेरा अनुभव सुगंध है और आपका दुर्गन्ध क्योकि सुगंध हो या दुर्गन्ध दोनों का अस्तित्व तो हवा ही है |
हवा को बाटने का सामर्थ कही नहीं, निर्वात का अस्तित्व भी हवा का न होना ही है|
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