Wednesday, October 23, 2013

एक बच्चा अपनी मां के साथ टॉफियों की एक
दुकान पर पहुंचा। वहां अनेक जारों में अनेक तरह
की टॉफियां सजी हुई थीं। बच्चे की आंखें उन
टॉफियों को देखकर ललचा रही थीं। दुकानदार
को स्नेह उमड़ आया, उसने कहा, बेटे, तुम्हें
जो भी टॉफी पसंद आ रही हो, वह बेझिझक ले
सकते हो।
बच्चे ने कहा, नहीं। दुकानदार ने बच्चे
को हैरानी से देखा और फिर समझाते हुए कहा, मैं
तुमसे पैसे नहीं लूंगा। अब तो तुम अपनी पसंद
की टॉफी ले सकते हो।
दुकान पर बच्चे के साथ उसकी मां भी थी। उसने
कहा, ठीक है बेटे, अंकल कह रहे हैं, तो ले लो।
लेकिन बच्चे ने फिर भी मना कर दिया। मां और
दुकानदार को वजह समझ में नहीं आई। फिर
दुकानदार को एक नया उपाय सूझा, उसने स्वयं
जार में हाथ डाला और बच्चे की तरफ
मुट्ठी बढ़ाई। बच्चे ने झट से अपने स्कूल के
बस्ते में सारी की सारी टॉफियां डलवा लीं।
दुकान से बाहर आने पर मां ने बच्चे से कहा, बड़ा अजीब
लड़का है तू। जब तुझे टॉफियां लेने
को कहा तब तो मना कर दिया और जब दुकानदार
अंकल ने टॉफियां दीं तो मजे से ले लीं। बच्चे ने
मां को समझाया, मेरी मुट्ठी बहुत ही छोटी है,
दुकानदार की मुट्ठी बड़ी है। मैं लेता तो कम
मिलतीं, उसने दीं तो बड़ी मुट्ठी भर कर दीं।

यही हाल आज के मनुष्य का है। हमारी सोच
बड़ी छोटी है; और प्रभु की सोच बहुत बड़ी है।
आज से 25 वर्ष पहले यदि आपको अपनी इच्छाओं
की सूची बनाने को कहा जाता कि आपकी जिन-जिन
वस्तुओं की इच्छा है उसे लिखो। तो शायद उस समय
जो लिखते, वह आज के संदर्भ में बहुत ही तुच्छ
होता।
आज आपको प्रभु ने या प्रकृति ने इतना कुछ
दिया है, जो आपकी सोच से कहीं बड़ा है। अपने
आसपास पड़ी वस्तुओं की तरफ नजर घुमाकर
देखें और सोचें, जिन वस्तुओं को आप
सहजता से भोग रहे हैं, वे कई साल पहले
आपकी सोच में भी नहीं थीं। इसलिए हमारी सोच
बहुत छोटी है तथा प्रभु की सोच हमारे लिए बहुत
व्यापक है।
एक बार श्री कृष्ण बलदेव एवं सात्यकि रात्रि के समय रास्ता भटक गये !
सघन वन था ;न आगे राह सूझती थी न पीछे लौट सकते थे !निर्णय हुआ कि घोड़ो को बांध कर यही रात्रि में विश्राम किया जाय !तय हुआ कि तीनो बारी-बारी जाग कर पहरा देंगे !
सबसे पहले सात्यकि जागे बाकी दोनो सो गये !एक पिशाच पेड़ से उतरा और सात्यकि को मल्ल-युद्ध के लिए ललकारने लगा !पिशाच की ललकार सुन कर सात्यकि अत्यंत क्रोधित हो गये !
दोनो में मल्लयुद्ध होने लगा !जैसे -जैसे पिशाच क्रोध करता सात्यकि दुगने क्रोध से लड़ने लगते !सात्यकि जितना अधिक क्रोध करते उतना ही पिशाच का आकार बढ़ता जाता !मल्ल-युद्ध में सात्यकि को बहुत चोटें आईं !
एक प्रहर बीत गया अब बलदेव जागे !सात्यकि ने उन्हें कुछ न बताया और सो गये !बलदेव को भी पिशाच की ललकार सुनाई दी !बलदेव क्रोध-पूर्वक पिशाच से भिड़ गये !लड़ते हुए एक प्रहर बीत गया उनका भी सात्यकि जैसा हाल हुआ !
अब श्री कृष्ण के जागने की बारी थी !बलदेव ने भी उन्हें कुछ न बताया एवं सो गये !श्री कृष्ण के सामने भी पिशाच की चुनौती आई !पिशाच जितने अधिक क्रोध में श्री कृष्ण को संबोधित करता श्री कृष्ण उतने ही शांत-भाव से मुस्करा देते ;पिशाच का आकार घटता जाता !अंत में वह एक कीड़े जितना रह गया जिसे श्री कृष्ण ने अपने पटुके के छोर में बांध लिया !
प्रात:काल सात्यकि व बलदेव ने अपनी दुर्गति की कहानी श्री कृष्ण को सुनाई तो श्री कृष्ण ने मुस्करा कर उस कीड़े को दिखाते हुए कहा -यही है वह क्रोध-रूपी पिशाच जितना तुम क्रोध करते थे इसका आकार उतना ही बढ़ता जाता था !पर जब मैंने इसके क्रोध का प्रतिकार क्रोध से न देकर तो शांत-भाव से दिया तो यह हतोत्साहित हो कर दुर्बल और छोटा हो गया !अतः क्रोध पर विजय पाने के लिये संयम से काम ले !