Tuesday, September 17, 2013

परिवार का सुख

आज सुबह सुबह बिना मतलब के मम्मी  से झगडा कर लिया और बिना नाश्ता किये हुए मैं बस पकडनें चौराहे परचला गया ।

अम्मा चिल्लाती रही कि बेटा नाश्ता कर ले, मगर मैं मुडा नहीं ।

अरे भाई कल रात देर से घर आने के लिये अम्मा ने डांटा था ना, सो नाराज हो गये थे और क्या ।

बस पकडी और चुप चाप निकल गये।
ओफ़िस पहुंचे और अपना काम शुरु कर दिया ।
अम्मा नाराज क्यों हो गयी..???
मैं बडा हो गया हूं.

अपने फ़ैसले खुद ले सकता हूं.
और भी ना जाने क्या क्या... ।

बस अभी बहुत हो गया,
अब नहीं रहना ऐसे में.
बहुत अच्छा होता है अंग्रेजो की संस्कृति में
सभी को आज़ादी है अपने फैसले लेनेके लिए.... |

बस दिन भर काम किया और रात में ज़बरदस्ती देर तक रुके, बिना मतलबपूरा दिन लगे रहे... |

दो चार बार घर से फोन आया मगर उसकोकाट दिया,
क्यों बात करें भाई.
नहीं सुनना किसी का प्रवचन... |

फिर भी घर कभी ना कभी तो जाना ही था ना.
सो रात के दस बजे घर पहुंचे... |
देखा ताला लगा हुआ था.
सोच कर मन परेशान.
क्या हुआ जो रात के दस बजे घर पर ताला लगा हुआ है.
पड़ोस के शर्मा जी से पूछा तो पता चला की मेरी अम्मा को पेट में दर्द उठा था और अभी अस्पताल ले गए हैं.
सुनते ही पैर के नीचे से ज़मीन निकल गयी.

सीधा सिटी हॉस्पिटल,
देखा अम्मा अब ठीक है.
डॉक्टर ने बोला इन्होने दो रातों से कुछ खाया नहीं था... |

यार मेरे..
मेरी अम्मा ने दो रातों से कुछ इसलिए नहीं खाया था.
क्योंकि वह मेरा इंतज़ार कर रही थी खाने पर.
मैं कैसे भूल गया की मेरी अम्मा अकेले खाना नहीं खाती.
हमेशा मुझे खिलाने के बाद ही खाती है.
सो जब मैं दोस्तों के साथ पार्टी में व्यस्त था.
तब मेरी मां मेरी राह देख रही थी....|

बस उसके बाद आत्म-ग्लानी से गला भर गया.
छोटू को बोल के रिक्शा बुलाया और अम्मा को ले के घर आया... |

घर आया और मुंग की दाल की खिचड़ी बनायी.
मैंने और अम्मा दोनों ने खायी.
एक एक कौर खिचड़ी अमृत से मीठी लग रही थी और समझ में आ रहा था
क्या है मेरी संस्कृति.
मेरे अपने परिवार का सुख..... |