Wednesday, April 17, 2013

अपने भारत की संस्कृति को पहचानें

अपने भारत की संस्कृति को पहचानें ***
* दो पक्ष - कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष !
* तीन ऋण - देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषि त्रण !
* चार युग - सतयुग, त्रेता युग, द्वापरयुग एवं कलयुग !
* चार धाम - द्वारिका, बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम !
* चारपीठ - शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम), गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं श्रन्गेरिपीठ !
* चर वेद- ऋग्वेद, अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद !
* चार आश्रम - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, बानप्रस्थ एवं संन्यास !
* चार अंतःकरण - मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार !
* पञ्च गव्य - गाय का घी, दूध, दही, गोमूत्र एवं गोबर , !
* पञ्च देव - गणेश, विष्णु, शिव, देवी और सूर्य !
* पंच तत्त्व - प्रथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश !
* छह दर्शन- वैशेषिक, न्याय, सांख्य, योग, पूर्व मिसांसा एवं दक्षिण मिसांसा !
* सप्त ऋषि - विश्वामित्र, जमदाग्नि, भरद्वाज, गौतम, अत्री, वशिष्ठ और कश्यप !
* सप्त पूरी - अयोध्या पूरी, मथुरा पूरी, माया पूरी ( हरिद्वार ), काशी, कांची (शिन कांची - विष्णु कांची), अवंतिका और द्वारिका पूरी !
* आठ योग - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधी !
* आठ लक्ष्मी - आग्घ, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य, भोग एवं योग लक्ष्मी !
* नव दुर्गा - शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री !
* दस दिशाएं - पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, इशान, नेत्रत्य, वायव्य आग्नेय, आकाश एवं पाताल !
* मुख्या ग्यारह अवतार - मत्स्य, कच्छप, बराह, नरसिंह, बामन, परशुराम, श्रीराम, कृष्ण, बलराम, बुद्ध एवं कल्कि !
* बारह मास - चेत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाड़, श्रावन, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फागुन !
* बारह राशी - मेष, ब्रषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, तुला, ब्रश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ एवं कन्या !
* बारह ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ, मल्लिकर्जुना, महाकाल, ओमकालेश्वर, बैजनाथ, रामेश्वरम, विश्वनाथ, त्रियम्वाकेश्वर, केदारनाथ, घुष्नेश्वर, भीमाशंकर एवं नागेश्वर !
* पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा, द्वतीय, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा , अमावश्या !
* स्म्रतियां - मनु, विष्णु, अत्री, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगीरा, यम, आपस्तम्ब, सर्वत, कात्यायन, ब्रहस्पति, पराशर, व्यास, शांख्य, लिखित, दक्ष, शातातप, वशिष्ठ !

Monday, April 8, 2013

सरयूपारीण ब्राह्मण

सरयूपारीण ब्राह्मणों की व्यवस्था समझने से पहले ब्राह्मण शब्द और उसके व्यापक सन्दर्भ को समझना अत्यन्त आवश्यक हैं। सामाजिक रूढियों और उससे जन्मे विद्वेष से आज ब्राह्मणत्व और उसके आदर की बात जातिवादी दंभ से जोड़ दी जाती हैं। किंतु मूल रूपेण ब्राह्मण कौन हैं? क्या मंदिरों और मठो में बैठकर कर्मकांडों के बल पर जीवनोपर्जन करे वाले या काल, राष्ट्र और मानवता के उत्थान में सर्वथा कर्मशील युगपुरुष...जीवन की क्षण-भंगुरता के मर्म को समझकर घर घर में जाकर भिक्षां देहि की पुकार लगाने वाले जन या "ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत" के संदेश से उसी क्षण-भंगुरता का परिहास उडाते प्रबुद्ध चिंतनशील जीव ....जीवन के हर रूप को समझने के लिए ज्ञान के सागर ने डूबने के लिए दुबारा जन्म लेने तत्पर द्विज....

ब्राह्मणों की पौराणिक उत्पत्ति की गाथा की चर्चा हम आने वाले चिठ्ठों में करेंगे किंतु आज ब्राह्मणों से संबंधित कुछ विचार...ब्राह्मण शब्द को सोचते ही सर्वप्रथम हिन्दुत्व की रूढिवादी जातिप्रथा उभरकर आती हैं। किंतु भारत में जन्मी जातिप्रथा और विश्व में कई स्थानों जैसे मिस्र, यूनान में दास प्रथा, सभी मानव के विकास-क्रम श्रम की महती आवश्यकता के कारण उपजी (नेहरू , भारत एक खोज )। श्रम अधारित यह व्यवस्थाएं कब जन्माधारित हो गयीं पता नहीं। पर यह तो तय हैं कि आर्यों के सामाजिक विकास में सभी वर्णों का बराबर का योगदान रहा हैं, जिस प्रकार कोई भी चारपाई तीन पैरों के बल पर किसी काम की नहीं होती वैसे ही हमारी सामाजिक स्थिरता की चारपाई भी अपनी साफलता हेतु सभी वर्णों पर बराबर निर्भर हैं। सभी जीवों में पूर्ण ब्रह्म रूप देखने वाले "पूर्णमदः पूर्णमिदं" के प्रणेता वैदिक ब्राह्मण कब कालांतर में कर्मकांडी होकर मनुस्मृति के आधार शीशे घोलने लगे पता नहीं। (वैसे मैंने मनु-स्मृति नहीं पढ़ी हैं किंतु मन कभी यह मानने के लिए तैयार नहीं की कोई भी भद्र जीव दुसरे जीव के प्रति इतना असहिष्णु होगा)। "वसुधैव कुटुम्बकं" का प्रथम उद्घोषक ब्राह्मण मुख्य रूप से सामाजिक ताने-बाने को तार-तार करने वाली व्यवस्था में विश्वास नहीं रख सकता हैं। दलाई लामा ने अपनी पुस्तक "दा आर्ट ऑफ़ हैप्पीनेस" में कहा हैं कि कोई भी धर्म सामाजिक विघटन का समाधान हैं न कि उसके विघटन का आधार। अतः इस मानव वादी धर्म के रक्षक के रूप में डटे ब्राह्मण कदापि भी विघटनकारी व्यवस्था के समर्थक नही बने रह सकते।

यह ब्राह्मणों का निष्कपट, निर्पंथ, निर्मल, शांत प्रिय, आत्म-संयामी, सत्य-अन्वेषी एवं ज्ञान पिपासु स्वभाव ही रहा होगा जिसने डॉ. ऑलिवर वेन्डेल होल्म्स सीनियर को अपने समाज के संभ्रांत सदस्यों के लिए "बोस्टन ब्राह्मण" जैसे शब्दों के चयन को मजबूर किया होगा। ब्राह्मण सदैव ही सत्य एवं ज्ञान की रक्षा के लिए तत्पर रहें हैं - चाहे वो वैदिक मीमांसा हो, या रावण रचित गणित सूत्र या फिर चाणक्य द्वारा राष्ट्र निर्माण ...यहाँ तक कि ब्राह्मणों ने हिदुत्व के बहार निकलकर बौध , जैन , सिख और इस्लाम (हुसैनी ब्राह्मण के रूप में ) सत्य की रक्षा की हैं।